लोक-गीत / नाट्य

बिहार के सांस्कृतिक तथा लोक-जीवन में ‘लोक नाट्यों’ का एक अपना ही महत्व है। ये लोकनाट्य मांगलिक अवसरों, विशेष पवोर् तथा कभी-कभी मो मात्र मनोरंजन की दृिष्ट से ही आयोजित-प्रायोजित किए जाते हैं। इन लोक नाट्यों में कथानक, संवाद, अभिनय, गीत, नृत्य तथा विशेष दृश्य, आदि सभी कुछ होता है और यदि नहीं होता है, तो वह है-सुसज्जित रंगमंच तथा पात्रों का मेक-अप एवं वेशभूषा।राज्य के प्रचलित लोकनाट्य हैं : 
(१) जट-जाटिन : प्रत्येक र्वष सावन से लेकर कार्तिक तक की पूणिर्मा अथवा उसके एक-दो दिन पूर्व पश्चात् मात्र अविवाहिताओं द्वारा अभिनीत इस लोकनाट्य में जट-जाटिन के वैवाहिक जीवन को प्रदर्शित किया जाता है।

 (२) सामा-चकेवा : प्रत्येक र्वष कार्तिक माह में शुक्ल पक्ष की सप्तमी से पूर्णमासी तक अभिनीत इस लोक-नाट्य में पात्र तो मिी द्वारा निर्मित होते हैं, किन्तु उनका अभिनय बालिकाओं द्वारा किया जाता है। इस अभिनय में सामा अथार्त श्यामा तथा चकेवा की भूमिका निभायी जाती है।
सामूहिक रूप से गाए जाने वाले गीतों में प्रश्नोंद्रार के माघयम से विषयवस्तु प्रस्तुत की जाती है।

 (३) बिदेसिया : इस लोकनाट्य में भोजपुर क्षेत्र के अत्यन्त लोकपिरृय ‘लौंडा नाच’ के साथ ही आल्हा, पचड़ा, बारहमासा, पूरबी गोंड, नेटुआ, पंवडिया आदि की पुट होती है। नाटक का प्रारम्भ मंगलाचरण से होता है। नाटक में महिला पात्रों की भूमिका भी पुरूष कलाकारों द्वारा की जाती है। पात्र भूमिका भी निभाते हैं और पृष्ठभूमि में गायन-वादन आदि का भी कार्य करते हैं। बिहार के सांस्कृतिक तथा लोक-जीवन में ‘लोक नाट्यों’ का एक अपना ही महत्व है। ये लोकनाट्य मांगलिक अवसरों, विशेष पवोर् तथा कभी-कभी मो मात्र मनोरंजन की दृिष्ट से ही आयोजित-प्रायोजित किए जाते हैं। इन लोक नाट्यों में कथानक, संवाद, अभिनय, गीत, नृत्य तथा विशेष दृश्य, आदि सभी कुछ होता है और यदि नहीं होता है, तो वह है-सुसज्जित रंगमंच तथा पात्रों का मेक-अप एवं वेशभूषा।

राज्य के प्रचलित लोकनाट्य हैं :

(१) जट-जाटिन : प्रत्येक र्वष सावन से लेकर कार्तिक तक की पूणिर्मा अथवा उसके एक-दो दिन पूर्व पश्चात् मात्र अविवाहिताओं द्वारा अभिनीत इस लोकनाट्य में जट-जाटिन के वैवाहिक जीवन को प्रदर्शित किया जाता है।
 (२) सामा-चकेवा : प्रत्येक र्वष कार्तिक माह में शुक्ल पक्ष की सप्तमी से पूर्णमासी तक अभिनीत इस लोक-नाट्य में पात्र तो मिी द्वारा निर्मित होते हैं, किन्तु उनका अभिनय बालिकाओं द्वारा किया जाता है। इस अभिनय में सामा अथार्त श्यामा तथा चकेवा की भूमिका निभायी जाती है। सामूहिक रूप से गाए जाने वाले गीतों में प्रश्नोंद्रार के माघयम से विषयवस्तु प्रस्तुत की जाती है।

 (३) बिदेसिया : इस लोकनाट्य में भोजपुर क्षेत्र के अत्यन्त लोकपिरृय ‘लौंडा नाच’ के साथ ही आल्हा, पचड़ा, बारहमासा, पूरबी गोंड, नेटुआ, पंवडिया आदि की पुट होती है। नाटक का प्रारम्भ मंगलाचरण से होता है। नाटक में महिला पात्रों की भूमिका भी पुरूष कलाकारों द्वारा की जाती है। पात्र भूमिका भी निभाते हैं और पृष्ठभूमि में गायन-वादन आदि का भी कार्य करते हैं।

 (४) भकुली बंका : प्रत्येक व?षर् सावन से कार्तिक माह तक आयोजित किए जाने वाले इस लोकनाट्य में जट-जाटिन द्वारा नृत्य किया जाता है। अब कुछ लोग स्वतंत्र रूप से भी इस नृत्य को करते हैं।

 (५) डोककक्ष : इस अत्यन्त घरेलू एवं निजी लोकनाट्य को मुख्यतः घर-आंगन परिसर में विशेष अवसरों, यथा-बारात जाने के बाद देर रात्रि में महिलाओं द्वारा आयोजित किया जाता है और इतने सावधनी बरती जाती है कि अल्पायु के परिवारीजन उसे देख-सुन न सकें। इसका कारण है लोकनाट्य में हास-परिहास के साथ ही अश्लील हाव-भाव, प्रसंग तथा संवाद जो विवाहिताओं द्वारा ही मुक्तकण्ठ से सराहे जाते हैं। इसीलिए, इस लोकनाट्य का सार्वजनिक प्रदशर्न नहीं किया जाता है।

 (६) किरतनिया : इस भक्तिपूर्ण लोकनाट्य में भगवान श्रीकृष्ण की लीलाओं का वर्णन भक्ति-गीतों, जिन्हें कीतर्न कहना उचित होगा, के साथ भाव एवं श्रद्धापूर्वक किया जाता है।

लोक-गीत

संस्कार गीत-बालक-बालिकाओं के जन्मोत्सव, मुण्डन, प-पूजन, जनेउफ तथा विवाह, आदि पर गाये जाने वाले संस्कार गीत हैं-सोहर, खेलौनो, कोहबर, समुझ बनी, आदि।गाथा-गीत-राज्य के विभिन्न क्षेत्रों में प्रचलित विवघ लकगाथाओं पर आधरित इन गाथा-गीतों को निम्न श्रणियों में श्रेणीबद्ध किया जा सकता है ः

(१) लोरिकायन-वीर रस से परिपूर्ण इस लोकगीत में नायक लोरिक के जीवन-प्रसंगों का जिस भाव से वर्णन करता है, वह देखते-सुनते ही बनता है।

(२) नयका बंजारा-सम्पूर्ण राज्य के विभिन्न क्षेत्रों में गाये जाने वाले लोक गीतों में प्रायः वि?षय-वस्तु तो एक ही होती है, किन्तु स्थान, पात्र तथा चरित्रों में विविघता के द?शर्न होते हैं।

(३) विजमैल-राजा विजयमल की वीरता का बखान करने वाले इन लोकगीतों में बढ़ा-चढ़ाकर प्रचलित गाथा का वर्णन किया जाता है।

(४) सलहेस-एक लोककथा के अनुसार, सलहेस, दौना नामक एक मालिन का प्रेमी था। उसके एक ?शत्रु ने ई?ष्यार्व?श सलहेस को चोरी के झूठे आरोप में बन्द बनवा दिया। दौना मालिन ने अपने प्रेमी सलहेस को किस प्रकार मुक्त कराया। बस इसी प्रकरण को इस लोक-गीत में भाव-विभोर होकर गया जाता है।

(५) दीना भदरी-इस लोक-गीत में दीना तथा भदरी नामक दो भाइयों के वीरता का वर्णन मार्मिकता से गाया जाता है।इसके साथ ही राज्य के विभिन्न अंचलों में आल्हा-उफदल, राजा ढोलन सिंह, छतरी चौहान, नूनाचार, लुकसरी देवी, कालिदास, मनसाराम, छेछनमल, लाल महाराज, गरबी दयाल सिंह, मीरायन, हिरनी-बिरनी, कुंअर बृजभार, राजा विक्रमादित्य, बिहुला, गोपीचन्द, अमर सिंह, बरिया, राजा हरि?श्चन्द्र, कारू खिर हैर, मैनावती आदि के जीवन एवं उनकी वीरता भरी गाथाओं को राज्य के गाथा-गीतों के रूप में गाया जाता है।

पर्वगीत-राज्य में वि?शे?ष पवोर्ं एवं त्योहारों पर गाये जाने वाले मांगलिक-गीतों को ‘पर्वगीत’ कहा जाता है। होली, दीपावली, छठ, तीज, जिउतिया, बहुरा, पीडि़या, गो-घन, रामनवमी, जन्मा?ष्टमी, तथा अन्य ?शुभअवसरों पर गाये जाने वाले गीतों में प्रमुखतः ?शब्द, लय एवं गीतों मंे भारी समानता होती है।ऋतुगीत-विभिन्न ऋतुओं में गाये जाने वाले ऋतुगीतों में प्रमुख हैं-कजरी अथवा कजली, चतुमार्सा, बारहामासा, चइता तथा हिंडोला, आदि।पे?शा गीत- राज्य में विभिन्न पे?शे के लोग अपना कार्य करते समय जो गीत गाते जाते हैं उन्हें ‘पे?शा गीत’ कहते हैं। उदाहरणाथर्-गेहूं पीसते समय ‘जाता-पिसाई’, छत की ढलाई करते समय ‘थपाई’ तथा छप्पर छाते समय ‘छवाई’ और इनके साथ ही विभिन्न व्यावसायिक कार्य करते समय ‘सोहनी, ‘रोपनी’, आदि गीत गाते-गाते कार्य करते रहने का प्रचलन है।जातीय गीत-समाज के विभिन्न क्षेत्रों की विविघ जातियां मनोकूल अपने ही गीत गाती हैं, जिन्हें ‘जातीय गीत’ कहते हैं। श्रोतागण उन्हें सुनकर अनुमान कर लेते हैं। कि गायक-गायिका किस जाति वि?शे?ष से सम्बन्धि्त हैं।उक्त लोक गीतों के साथ ही बिहार में समय-समय पर और वि?शे?षकार संघयाकाल समय भोजनोपरान्त सांझापराती, झूमर, बिरहा, प्रभाती, निगुर्ण, देवी-देवताओं के गीत गाने का प्रचलन है
।प्रमुख लोक गायन- राज्य के ?शारदा सिन्हाव, डॉ. ?शंकर प्रसाद, मोतीलाल ‘मंजुल’, विंघयवासिनी देवी, नन्द कि?शोर प्रसाद, कमला देवी, केसरी नन्दन भगत, कुमुद अखौरी, ग्रेस कुजूर, वि?ष्णु प्रसाद सिन्हा, ब्रज कि?शोर दुबे, भरत सिंह भारती, संतराज सिंह ‘रागे?श’, योगेन्द्र सिंह अलबेला, अजित कुमार अकेला, भरत ?शमार्, ?शम्भूराम, कविता चौघरी, उमाकान्त कमल, ललिका झा, उर्व?शी, रेणुका सहाय आदि बहुचचिर्त एवं बहुप्र?शंसित लोक गायन हैं।

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