चित्रकला

बिहार में ‘बौद्ध घर्म’ का प्रादुभार्व हुआ। इसीलिए यहां की चित्रकला में ‘बौद्ध शैली’ विकसित हुई। राज्य के मौर्यवंशी राजा-महाराजाओं ने भी बौद्ध घर्म के प्रचार-प्रसार हेतु ‘बौद्ध चित्रशैली’ को अपनाया। तत्कालीन पाटलिपुत्र तथा आज का पटना प्रारम्भ्ज्ञ से ही राज्य की राजधनी रहा है। अतः बौद्ध चित्र-शैली का प्रमुख केन्द्र राज्य की राजधनी रही। यहीं से देश-विदेश में बौद्ध शैली के चित्रकार बौद्ध चित्रकला का प्रचार-प्रसार करते थे।बाद में जब हुमायूं पफारस के युद्ध के प?श्चात् दिल्ली लौटा तो वह राज्य के अनेकानेक चित्रकारों को अपने साथ दिल्ली से आया। पहले हुमायूं पिफर उसके वं?शजों ने इन चित्रकारों को भरपूर प्राश्रय एवं प्रोत्साहन दिया। पफलतः चित्रकारों ने अपनी ‘बौद्ध ?शैली’ कास आ?शातीत विकास किया। दिल्ली से विकसित तथा पल्लवित इस ‘बौद्ध ?शैली’ में ‘मुगल ?शैली’ का भी प्रभाव हुआ। चूंकि इस मौलिक तथा मिश्रित ?शैली का केन्द्र दिल्ली था। अतः इस ?शैली को ‘दिल्ली ?शैली’ के रूप में स्वीकार कर लिया गया।पटना ?शैली-जब ?शाहजहां तथा औरंगजेब के ?शासन-काल में चित्रकला का विकास अवरूद्ध हो गया और चित्रकार नकारे जाने लगे, तो चित्रकारों ने आजीविका हेतु दे?श के दक्षिण, उद्रार तथा प?िश्चम की ओर पलायन प्रारम्भ कर दिया। वहां उन्हें मुगल ?शासकों जैसा प्राश्रय तो नहीं मिला, किन्तु जीवन-यापन की सुविधएं तथा संरक्षण राज्य की चित्रकला को विकसित करने हेतु प्रोत्साहन अव?श्य मिला। बि्रटि?श ?शासन ने जब राजा-महाराजाओं तथा नवाबों के आथिर्क स्त्रोतों को भी नियन्ति्रत करना प्रारम्भ किया, तो चित्रकारों को भी अपने मूल राज्य बिहार की ओर उन्मुख होने हेतु विव?श होना पड़ा।व?षर् १७६0 के लगभग पलायित चित्रकार तत्कालीन राजधनी ‘पाटलिपुत्र’ (आज का पटना) वापस आ गए। इन पलायित चित्रकारों ने राजधनी के लोदी कटरा, मुगलपुरा, दीवान मोहल्ला, मच्छरहा तथा नित्यानन्द का कुआं क्षेत्र में, कुछ चित्रकारों ने आरा तथा दानापुर में बसकर इस चित्रकला ?शैली का प्रादुभार्व किया उसे ‘पटना ?शैली’ अथवा ‘पटना कलम’ कहते हैं।इस ‘पटना ?शैली’ के चित्रकारों को अपनी चित्रकारी हेतु वे साघन तो उपलब्घ न हो सके, जो उन्हें दिल्ली दरबार में सुलभ थे। इसलिए उन्होंने मुगलकालीन सुविधओं-प?शु-पक्षियों के बाल तथा पंख, खनिज रंग, स्वर्ण-वकर् तथा हाथी दन्त आदि का प्रयोग त्यागकर न केवल साघनों, बल्कि चित्र-वि?षयों में भी आमूल परिवतर्न कर दिया। अब इस ‘पटना ?शैली’ के चित्रकारों ने प्रमुखतः अपनी चित्रकारी में व्यक्ति वि?शे?ष, पर्व-त्योहार एवं उत्सव तथा जीव-जन्तुओं को महत्व दिया।इस ?शैली के अन्तिम ?शी?षर् चित्रकारी ई?श्वरी प्रसाद वमार् के व?षर् १९४९ में हुए निघन के प?श्चात् उनकी तथा अन्य चित्रकारों की विरासत को पटना कला महाविघालय पटना संग्रहालय तथा अन्य पुरातन चित्रकारों के निजी संग्रहालय में सुरक्षित रखा गया है।प्रमुख चित्रकार-इस ?शैली को पुरू?षों की ?शैली माना जाता है, क्योंकि अघकतिं?श चित्रकार पुरू?ष ही हैं। पिफर भी द?शोबीबी तथा सोना कुमारी ने पुरू?षों के वचर्स्व को तोड़ने में सपफलता अव?श्य प्राप्त की है।इस ?शैली के प्रमुख चित्रकार हैं-झूमक लाल, सेवकराम, ?िशवदयाल, हुलास लाल, ?िशव लाल, लालचन्द्र, गोपाल लाल, गुरू सहाय लाल, ई?श्वरी प्रसाद वमार्, जय गोविन्द लाल, कल्हैया लाल, यमुना प्रसाद, बहादुर लाल, दल्लू लाल, भैरवजी आदि।मिथिला ?शैली-मिथिलांचल की लोक कला के रूप में ?ार-आंगन से विकसित यह चित्रकला ?शैली, राज्य की दूसरी प्रमुख चित्रकार ?शैली है। इस ?शैली को प्रोत्साहन दिया ‘भारतीय हस्त-?िशल्प परि?षद्, दिल्ली’ के भास्कर कुलकर्ण ने। उन्हानंे मघुबनी के चित्रकारों से चित्र बनावाए और उन्हंे व?षर् १९६७ में दिल्ली में आयोजित चित्रकार प्रद?शर्नी में प्रद?िशर्त किया। दे?श-विदे?श के चित्रकारें तथा चित्रकला समीक्षकों ने इस ?शैली में चित्रित चित्रों की मुक्त कण्ठ से प्र?शंसा की। इस ?शैली में चित्रित चित्रां को ‘मिथिला पेन्टिंग’ के नाम से लोकपि्रयता मिली। पिफर जब तत्कालीन रेलमंत्री ललित नारायण मिश्र ने इन ‘मिथिला पेन्टिंग्स’ को ‘जयन्ती जनता एक्सप्रेस’ तथा अन्य प्रमुख रेलगाडि़यों में स्थान दिया तो इनकी लोकपि्रयता के साथ ही आथिर्क सम्पन्नता को भी बढ़ावा मिलने लगा। दे?श के पांच सितारे होटलों तक ने इनको प्रमुखता दी।आज इस ?शैली की चित्रकारी कागज, कपड़े तथा कैनवास पर मघुबनी तथा रॉटी, जितवारपुर, भवानीपुर, लहेरियागंज तथा सिमरी में बनाई जाती है। चित्रकारी में आघुनिकतम साघनों तथा वि?षयों का प्रयोग होने लगा है। प्रमुख चित्रकारी-इस ?शैली के चित्रकारों में लगभग ९५ः चित्रकारों की संख्या महिलाओं की है। इसीलिए इसे महिलाओं की चित्रकारी कहा जाता है। पिफर भी नरेन्द्र कुमार कर्ण, अरूण कुमार यादव तथा ?िशवन पासवान आदि चित्रकारों ने महिलाओं के क्षेत्र को चुनौती देने का सुप्रयास किया है। आज की बहुचचिर्त तथा राज्यस्तरीय एवं रा?ष्ट्रीय पुरस्कार प्राप्तकतार् महिला चित्रकार हैं-भगवती देवी, महासुन्दरी देवी, बाछो देवी, सीता देवी, उरबा देवी, आ?शा देवी, जगदम्बा देवी, यमुना देवी, सुश्री दुगार्, बौआ देवी, ?शान्ति देवी, गोदावरी दद्रा, भूला देवी, भूमा देवी, हीरा देवी, मुद्रिका देवी, नीलू यादव, भारती यादव आदि।मंजू?षा ?शैली-राज्य के भागलपुर क्षेत्र में सनई की लकडि़यों से बनी मन्दिर सरीखी मंजू?षा पर क्षेत्र में प्रचलित बिहुला-वि?षहरी की लोक कथाओं में वणिर्त चित्रों को कूचियों द्वारा चित्रित किया जाता है। इस ?शैली में पात्रों का मात्र बायां भाग ही चित्रित किया जाता है।प्रमुख चित्रकार-श्रीमती चक्रवर्ती देवी इस ?शैली की प्रमुख चित्रकार हैं।सांझी कला ?शैली- इस ?शैली को अल्पना, रंगोली तथा अरिपन नाम से भी जाना जाता है। उद्रार प्रदे?श के ब्रज क्षेत्र की यह चित्रकला ?शैली पटना तथा उनकी सीमावर्ती क्षेत्रों में लगभग ५0 व?षोर् से प्रचलित है। कला समीक्षक इसे ‘कला-?शैली’ न मानकर मात्र एक ‘कला’ स्वीकार करते हैं।थंका ?शैली-इस ?शैली को तिब्बती ?शैली का ही एक रूप स्वीकार किया जाता है। इस ?शैली में ‘बौद्ध ?शैली’ के सहज ही द?शर्न होते हैं। इसका कारण है चित्रकारी तथा वि?षय-वस्तु में बौद्ध के धमोर्पदे?शों का सजीव प्रस्तुतीकरण।इस ?शैली के जो १0९ चित्र पटना संग्रहालय में सुरक्षित हैं, उनमें घर्मपाल, दिव्याता, अभिघमोर्पदे?श, मण्डल तथा अंतप्रकृति का वण्र्यद?शर्न मिलता है।प्रमुख चित्रकार-बटुके?श्वर नाथ श्रीवास्तव, उपेन्द्र महारथी, दिने?श बख्?शी, राधमोहन प्रसाद, ?िशल्पी सुरेन्द्र, ?श्यामलानन्द, महावीर प्रसाद, पाण्डेय सुरेन्द्र, वीरे?श्वर भाचार्य, कुमुद ?शमार्, ?श्याम ?शमार्, ?िशवनन्दन रॉय, ए.पी. बादल, ?शांभवी, अनिल कुमार सिन्हा, रजत?घो?ष जमर जलील आदि।

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