प्रमुख मेले

सोनपुर का मेला-प्रत्येक र्वष कार्तिक माह में र्वष 1850 से निरन्तर सोनपुर में लगने वाला यह मेला, ग्रामीण एवं सांस्कृतिक दृिष्ट से विश्व का और पशुघन की दृिष्ट से एिशया का सबसे बड़ा मेला है। इस मेले का एक धर्मिक स्वरूप भी है। धर्मिक ग्रन्थों में वणिर्त ‘हरिहर क्षेत्र’ तथा गज-ग्राह की लीला इसी क्षेत्र से सम्बन्धित है। लगभग 15 किमी क्षेत्र में 100 से अघकि मन्दिरों तथा मठों के इस क्षेत्र में आयोजित इस वािषर्क मेले में देश-विदेश के विभिन्न क्षेत्रों से 15-20 लाख व्यक्ति आते हैं और भारत की मिश्रित धर्मिक सांस्कृतिक, सामाजिक एवं साम्प्रदायिक एकरूपता का आनन्द लेते हैं
यह मुख्यतः पशुओं का मेला है और एक माह चलता है। इस मेले में सभी प्रकार के पशुओं का क्रय-विक्रय होता है।
इस मेले को ‘पशु श्रेणियों’ के अनुसार व्यवस्थित किया जाता है, यथा-गाय बाजार, घोड़ा बाजार, भैंस बाजार, बैल बाजार, हाथी बाजार, लकड़ी बाजार, पौध बाजार तथा मीना बाजार आदि।

पितृपक्ष मेला-बिहारके ‘गया’ में प्रत्येक र्वष भाद्रपद पूणिर्मा से आिश्वन माह की अमावस्या तक आयोजित इस धर्मिक मेले में देश-विदेश से लाखों हिन्दूजन आते हैं और अपने पूर्वजों का श्राद्ध कार्य करके उनकी मुक्ति की प्राथर्ना करते हैं।

हरदी मेला-प्रत्येक र्वष ‘िशवरात्रि’ के पर्व पर यह मेला मुजफ्फरपुर में 15 दिन तक आयोजित किया जाता है।

बेतिया मेला-प्रत्येक र्वष दशहरे पर यह मेला बेतिया में आयोजित किया जाता है। लगभग 15-20 दिन तक यह आयोजित इस पशु मेले में राज्य के हजारों लोग अपने-अपने पशुओं के क्रय-विक्रय के लिए यहां आते हैं।

सौराठ मेला-प्रत्येक र्वष जेठ-आषाढ माह में ‘सभागाछी’ (मघुबनी जिला) में आयोजित इस मेले में अविवाहित वयस्क युवकों को विवाह हेतु प्रदशिर्त किया जाता है। यह मेला विश्व में अपनी अद्भुत रूप के लिए प्रसिद्ध है।

काली देवी का मेला-प्रत्येक र्वष अक्टूबर/नवम्बर माह में ‘फारबिसगंज’ में आयोजित इस 15 दिवसीय धर्मिक मेले में काली देवी की पूजा की जाती है।

सिमरिया मेला-प्रत्येक र्वष कार्तिक माह में जब सूर्य उद्रारायण में होता है, तो यह मेला बरौनी जंक्शन से 8 किमी दूर दक्षिण-पूर्व में ‘राजेन्द्र पुल’ के आसपास आयोजित किया जाता है। इस मेले का धर्मिक दृिष्ट से अघकि महत्व होता है।

कोसी मेला-प्रत्येक र्वष पौष पूणिर्मा पर कटिहार के निकट ‘कोसी नदी’ पर आयोजित इस मेले में श्रद्धालू जन पुण्य भी कमाते हैं। और लकड़ी के सामान का क्रय-विक्रय भी करते है।

लौरियानन्दनगढ़ मेला-प्रत्येक र्वष दिसम्बर माह में पूणिर्या जिले के ‘गुलाबबाग’ में इस 15 दिवसीय मेले का आयोजन किया जाता है।

ककोलत मेला-प्रत्येक र्वष मेष संक्रांति के अवसर पर नवादा जिले के ‘ककोलत’ नामक स्थान पर इस धर्मिक मेले का आयोजन छह दिनों तक किया जाता है।

राजगीर का मेला-यह मेला हर तीसरे र्वष मलमास (लौंद का महीना) में लगता है और पूरे एक माह चलता है।

पुस्तक मेला-प्रत्येक र्वष प्रायः नवम्बर माह के प्रथम सप्ताह में पटना में आयोजित 15 दिवसीय मेले में देशभर के प्रमुख प्रकाशक अपनी पुस्तकों को प्रदिशर्त करते हैं। राज्य के पुस्तक प्रेमी तथा िशक्षण संस्थाएं पुस्तकों की खरीद करके अपने पुस्तक संग्रहों को सम्पन्न बनाते हैं।उक्त मेलों के साथ ही राज्य के विभिन्न भागों में अनेकानेक मेले आयोजित किए जाते हैं। उनमें से प्रमुख हैं-’


*  गया का बौद्ध मेला *  मनेर शरीफ का उर्स *  भागलपुर का पापहरणि मेला *   सीतामढ़ी का विवाह पंचमी मेला *   दरभंगा का हरारी पोखर मेला *   बक्सर का लिी भंटा मेला *  र्सीतामढ़ी का बगहीमठ मेला *   मुजफ्फरपुर का तुर्की मेला *   सहरसा के सिंहेश्वर का मेला *   झंझारपुर का बिन्देश्वर मेला *   खगडि़या का गोपाष्टमी मेला तथा *   ब्रपुरा कास कृिष मेला आदि।

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