भाषाएँ एवं बोलियाँ


बिहार में बोली जाने वाली भाषाओं और बोलियों में मैथिली, अंगिका, वज्जिका, मगही और भोजपुरी हैं। इनके अतिरिक्‍त थारु भाषा भी बोली जाती है।

* बिहार की राजभाषा हिन्दी तथा द्वितीय राजभाषा उर्दू है। यहाँ के प्रायः सभी लोग हिन्दी-उर्दू मिश्रित भाषा बोलते हैं। इसे बिहारी भाषा कहा जाता है।
* पहाड़ी भाषाओं में संथाली, मुंडारी, उरॉव, हो और खगड़िया आदि प्रमुख हैं।
* ये भाषाएँ और बोलियाँ प्रमुख जनपदों में व्यवह्रत होती आयी हैं, इसी जनपद से इसका नामकरण हुआ है।
* स्थानीय मान्यताएँ, उपमाएँ और संस्कारगत बातें इसमें अलग-अलग जनपदों में स्पष्ट परिलिक्षित होती हैं। लोक कथा, लोक गाथा, लोक नाट्‍य एवं नृत्य, प्रकीर्ण साहित्य आदि इस भाषा एवं बोली का विषय है।
* हिन्दी, उर्दू, तथा अंग्रेजी बिहार राज्य में बोली जाने वाली प्रमुख भाषाएँ हैं।
* १९८४ ई. में उर्दू को राज्य में द्वितीय राजभाषा का दर्जा दिया गया।
बिहार राज्य में बोली जाने वाली पाँच प्रमुख भाषाएँ निम्नलिखित हैं-
(१) मगही, (२) भोजपुरी, (३) मैथिली, (४) अंगिका, (५) वज्जिका।

बिहार में भाषा वर्ग की दृष्टि से दो भागों में विभाजित किया जा सकता है-(१) आर्ययन भाषा, (२) आदिवासी भाषा।


मगही

मगही मगधी का अपभ्रंश शब्द है जिसका अर्थ है-मगध जनपद की भाषा। यह मगध जनपद की लोकसभा थी जो वर्तमान में भी बोली जाती है। डॉ. ग्रियर्सन के अनुसार मगही भाषा के दो क्षेत्र हैं-मध्य बिहार और पूर्वी बिहार। पूर्वी बिहार के क्षेत्र के अन्तर्गत नागपुरिया और कुरमाली को रखा जा सकता है। मगही बोलने वालों की जनसंख्या गरीब ७५ लाख है। मगही में मुद्रित साहित्य का अभाव है। अब शोध प्रबन्ध से मगही तैयार हो रही है। यह भाषा गया, पटना, जहानाबाद, नवादा, मुंगेर, हजारीबाग और पलामू जिलों में बोली जाती है। लेकिन पटना और गया जिले में सबसे अधिक बोली जाती है। मगही के प्रथम कवि ईशान माने जाते हैं जिनका रचना काल सातवीं शताब्दी माना जाता है। सिंहवंश की प्रारम्भिक भाषा भी मगही में है। यह भाषा सबसे पहले राष्ट्रभाषा के रुप में दर्जा पा चुकी है। इसे पालि भाषा भी कहा जाता है।


भोजपुरी

भोजपुरी भाषा की उत्पत्ति भोजपुर से हुई है जो शाहबाद जिला में स्थित एक गाँव है जहाँ प्राचीन उज्जैनी क्षत्रियों की राजधानी थी। यह भाषा बोलने वाले बिहार और उत्तर प्रदेश के करीब पचास हजार वर्ग मील में फैले हैं। यह भाषा बिहार के मुख्यतः रोहतास, भोजपुर, बक्‍सर, कैमूर, सारण, सीवान, गोपलगंज, पश्‍चिमी चम्पारण, पलामू और रांची के कुछ भागों में बोली जाती है। जबकि उत्तर प्रदेश के मिर्जापुर, वाराणसी, गाजीपुर, बलिया, आजमगढ़, जौनपुर, गोरखपुर, देवरिया तथा बस्ती जिलों में बोली जाती है। बिहार में भोजपुरी बोलने वालों की संख्या करीब एक करोड़ दस लाख है। भोजपुरी भाषा में अनेक फिल्मों के निर्माण से इसके प्रचार-प्रसार में वृद्धि हुई है। विदेशों में भी भारतीय मूल के भोजपुरी भाषी मॉरीशस, फिजी, गुयाना, सुरीनाम आदि देशों में फैले हुए हैं। भोजपुरी का प्राचीन लिखित साहित्य बहुत कम है। लोक भाषा और साहित्य की दृष्टि से यह बहुत समृद्ध, सरस और ममस्पर्शी भाषा है। यह भाषा प्राचीन काशी जनपद की भाषा थी।


मैथिली

यह भाषा बिहार की भाषाओं में सबसे उन्‍नत और विकसित है। इसकी उत्पत्ति दसवीं शताब्दी में हुई थी। मैथिली की सबसे पहली रचना वर्णानात्मक मानी जाती है जिसे ज्योतिश्‍वर ने रचा था। मैथिली भाषा विदेह महाजनपद की भाषा है। कवि कोकिल विद्यापति इस भाषा के सर्वोपरि कवि हैं। मैथिली भाषा दरभंगा, मधुबनी, समस्तीपुर, मधेपुरा, सहरसा, सीतामढ़ी व पूर्णिया जिलों में बोली जाती हैं। मैथिली भाषा का क्षेत्र बिहार से अधिक नेपाल में है। नेपाल में ऐतहर सरलाही और महोअरी जिले की बोली मैथिली है। बिहार के दरभंगा जिले के मधुबनी और सदर सबडिवीजन तथा सहरसा में प्रधान रुप से बोली जाती है। मैथिली भाषा का प्रयोग ब्राह्मणों और कायस्थों ने एक पृथक्‌ लिपि की रचना की है जिसे मैथिली लिपि कहते हैं। इस लिपि को मिथिलाक्षर या तिहूता कहते हैं। यह बिहार में सर्वाधिक बोली जाने वाली भाषा है। यह बिहारी बोलियों में प्रथमतः मैथिली आती है। लिग्‍इवंस्टिक सर्वे ऑफ इण्डिया के अनुसार मैथिली भाषा को बोलने वालों की संख्या एक करोड़ है।


अंगिका

अंगिका भाषा अंग जनपद की है। इस भाषा को भागलपुरी भाषा भी कहा जाता है। अंगिका भाषा दुमका, देवधर, गोड्डा, सोहबगंज, मुंगेर, बेगूसराय, खगड़िया आदि जिलों में बोली जाती है। यह भाषा मैथिली का ही परिवर्तन रुप है। अतः इसे मैथिली की उपभाषा मानी जाती है। अंगिका भाषा की प्राचीनतम पुस्तक छठी शताब्दी में ’ललित विस्तार’ नामक बौद्ध ग्रन्थ की रचना है। इस भागलपुरी भाषा को छिकाछिकी भी कहा गया है। इसके बोलने वालों की संख्या १.१२ करोड़ है।


वज्जिका

वज्जिका वैशाली एवं मुजफ्फरपुर जिले की भाषा है। इसे भी मैथिली की एक उपभाषा माना जाता है। वज्जिका वज्जि संघ की भाषा है। इस क्षेत्र की बोली को पश्‍चिमी मैथिली या मैथिली भोजपुरी कहा जाता है। प. राहुल सांकृत्यायन आदि विद्वानो ने वज्जियों की बोली समझकर इसका नाम वज्जिका दिया है। वज्जी जनपद की भाषा सभ्यता और संस्कृति में पूर्व विदेह क्षेत्र में प्रारम्भ से भिन्‍नता है। यह भाषा सम्पूर्ण मुजफ्फरपुर, चम्पारण का पूर्वी क्षेत्र आदि क्षेत्र में बोली जाती हैं। वज्जिका का क्षेत्र करीब चौबालीस सौ वर्ग मील फैला है। वज्जिका भाषा की बोलने वालों की संख्या करीब बासठ लाख है। मुण्डा परिवार की भाषाएँ-यह भाषा बिहार की आदिम जातियों में प्रचलित है जो अब मुख्यतः झारखण्ड क्षेत्रों में रांची, दुमका, पलामू, हजारीबाग, गुमला, लोहरदग्गा, सिंहभूम, धनबाद जिले आदि में बोली जाती हैं। संथाल जनजाति की भाषा भी मुण्डा परिवार की भाषा मानी जाती है। कुरमाली, थारु, कोरघा, खन्‍ना आदि छोटा नागपुर के आदिवासियों के बीच प्रचलित भाषा बोली है। नागपुरिया भाषा-जो मगही और आदिवासियों की भाषा का मिश्रित रुप है। यह प्रायः छोटा नागपुर (अब झारखण्ड) में बोली जाती है। थारु भाषा-भोजपुरी का एक अलग रुप चम्पारण जिले के आदिवासियों में प्रचलित है। इसे मधेसी (मध्य देशीय) कहा जाता है। इसी जिले पश्‍चिमोत्तर सीमावर्ती खण्डों में बोली जाने वाली भाषा थारु है। यह नेपाल की तराई में थारु जाति में बोली जाती है। यह दरभंगा जिले से उत्तर प्रदेश के बहराइच तक बोली जाती ।



खानपान
बिहार अपने खानपान की विविधता के लिए प्रसिद्ध है । शाकाहारी तथा मांसाहारी दोनो व्यंजन पसंद किये जाते हैं । मिठाईयों की विभिन्न किस्मों के अतिरिक्त अनरसा की गोली, खाजा, मोतीचूर का लड्डू, तिलकुट यहाँ की खास पसंद है। सत्तू, चूड़ा-दही और लिट्टी-चोखा जैसे स्थानीय व्यंजन तो यहाँ के लोगों की कमजोरी है । लहसून की चटनी भी बहुत पसंद करते हैं। लालू प्रसाद के रेल मंत्री बनने के बाद तो लिट्टी-चोखा भारतीय रेल के महत्वपूर्ण स्टेशनों पर भी मिलने लगा है। सुबह के नास्ते मे चुडा-दही या पुरी-जिलेबी खूब खाये जाते है। दिन में चावल-दाल-सब्जी और रात में रोटी-सब्जी सामान्य भोजन है।










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